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"चलता गया"

चलता गया चलता गया,
ना इधर देखा ना उधर,
सामने आ गई मंजिल,
बन गई सीधी सी डगर,
ना इस पार ना उस पार,
बस चलता गया मैं लगातार,
फिर मिल गई मंजिल,
लगा मिल गई खुशी अपार,
फिर होने लगी मेरी जयजयकर,
यह नतीजा था लगातार चलने का,
इधर उधर ना भटकने का,
प्रदर्शित इसी तरह करता है सब कोई,
परन्तु मेरी हार को नहीं देखता कोई,
मेरी इस जीत में हार भी थी,
इसे आलोचनाएं भी खेलनी पड़ी थीं,
यह तो बस मैं ही जानता हूं,
परन्तु इस जीत में एक खास बात है,
इसमें आत्मसम्मान बहुत ही ज्यादा है,
जो मन को बहुत शुख पहुंचता है।।


शीख: लगे रहिए और जीतते रहिए।।
🏃🏃🏃🤗🌝✌️🤩🏃🏃🏃

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